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Munna Singh Chauhan:विधायक मुन्ना सिंह चौहान के भाषण के बाद उत्तराखंड के शहरी निकायों में OBC आरक्षण का मुद्दा गरमा

महिला आरक्षण, आर्थिक आधार पर आरक्षण, आंदोलनकारी आरक्षण के बाद ओपन कैटेगरी की नौकरियां वैसे ही सीमित हो गई हैं, विधायक मुन्ना चौहान, विनोद चमोली ने इस बहाने बहस तो शुरू कर ही दी है।

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26/08/2024
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Munna Singh Chauhan:विधायक मुन्ना सिंह चौहान के  भाषण के बाद उत्तराखंड के शहरी निकायों में OBC आरक्षण का मुद्दा गरमा

मुन्ना सिंह चौहान

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देहरादून:भारत सरकार दिसंबर 1978 में ओबीसी जातियों को चिन्हित करने के लिए बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक कमीशन गठित करती है। कमीशन ने शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन को तय करने के लिए 11 इंडिकेटर तय किए। इसमें सबसे बड़ा आधार था कि कोई समाज अपनी आजीविका कमाने के लिए किस हद तक मैनुअल लेबर पर निर्भर है। साथ ही राज्य की औसत आय के मुकाबले संबंधित समाज की औसत पारिवारिक आय 25 प्रतिशत से अधिक न होने, कच्चे मकान, पेयजल, स्कूलों की उपलब्धता और दूरी जैसे प्रमुख शर्तें भी शामिल थीं, जाहिर है इन मानकों पर 1980 के दशक का पूरा उत्तराखंड ओबीसी चिन्हित हो सकता था।

लेकिन उत्तराखंड चूंकि जातीय संरचना में एक अपर कास्ट राज्य रहा है, इस कारण यहां के लोगों ने तब खुद को पिछड़े के रूप में चिन्हित किए जाने में खास रुचि नहीं दिखाई। हालांकि उनके सामने जौनसार का सफल उदाहरण था, जहां सभी ठाकुर- बामण तब भी मजे से एसटी रिजर्वेशन ले रहे थे, लेकिन शायद उस समय लोग ओबीसी रिजर्वेशन की संभावनाओं का आंकलन नहीं कर पाए।

09 नवंबर 2000 के दिन

तो राज्य गठन के समय उत्तराखंड में करीब 81 जातियां ओबीसी के खाते में आती हैं। लेकिन अब जातीय पहचान, नौकरी की चाह के आगे ढीली पड़ने लगी। नतीजा उत्तराखंड राज्य अब नए सिरे से ओबीसी चिन्हिकरण करता है, एनडी तिवारी सरकार के समय गोरखा समुदाय से शुरू करते हुए अब कुल 90 जातियां ओबीसी में शामिल हो चुकी है। गौर करने की बात यह है कि अब राज्य सरकार जातियों को ओबीसी नहीं बल्कि क्षेत्र के आधार पर समुदाय को ओबीसी घोषित करती है, (उदाहरण के लिए – फिक्वाल, गंगाडी, राठी, विन्हारी, रवांल्टा, पैनखंडा आदि) इसके लिए राजस्व क्षेत्र का स्पष्ट चिन्हिकरण किया जाता है, इसे इस क्षेत्र के निवासी सभी ठाकुर बामण, ओबीसी के दर्जे में आ जाते हैं। इस तरह राज्य में ओबीसी का संख्याबल बढ़ रहा है। इस बीच इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, कि दूसरे राज्यों से आए लोग भी यहां ओबीसी का लाभ ले रहे हों। दूसरी तरफ ओबीसी कोटा अब भी 14 प्रतिशत ही बना हुआ है। इसलिए ओबीसी कमीशन कई बार राज्य सरकार से इस कोटा को बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है।

ओबीसी कोटा निर्धारण करने की प्रक्रिया देश भर में चल रही

तो इस समय निकायों में ओबीसी कोटा निर्धारण करने की प्रक्रिया देश भर में चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश के फैसले में सभी राज्यों के लिए इसके लिए स्वतंत्र आयोग बनाते हुए, वास्तविक जरूरत के अनुसार (संख्या बल के अनुसार नहीं) आरक्षण देने को कहा है। इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार की ओर से गठित जस्टिस बीएस वर्मा आयोग, इसी साल 26 जनवरी का अपनी रिपोर्ट सौँप चुका है। इस रिपोर्ट के अनुसार बड़कोट जैसे निकायों में ओबीसी संख्या 76 प्रतिशत तक पाई गई है, आयोग ने सभी स्तर पर ओबीसी आरक्षण बढाने की सिफारिश की है, मजे की बात यह है आयोग इसके लिए दो साल से कसरत कर रहा था, इसके लिए सभी ब्लॉक, नगर निकायों में जनप्रतिनिधियों के साथ विचार विमर्श किया गया, लेकिन तब किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया।

हाल के समय में महिला आरक्षण, आर्थिक आधार पर आरक्षण, आंदोलनकारी आरक्षण के बाद ओपन कैटेगरी की नौकरियां वैसे ही सीमित हो गई हैं, विधायक मुन्ना चौहान, विनोद चमोली ने इस बहाने बहस तो शुरू कर ही दी है।

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